बचपन की वह शाम मधुर
सपनो में खेला करते थे
थी किसे खबर है रात निकट
बेखोफ ठिठोला करते थे
लेकिन डूबी यह संध्या भी
अंधियारे ने आगोश लिया
बचपन का छोटा पुष्प कही
जीवन की दोड़ में छूट गया
लेकिन चंचल था मन अब भी
पल भर पहचान नहीं पाया
ठोकर खाकर संभला जाना
वह बचपन छोड़ कही आया
अब सीखा करते है हम भी
कैसे सपनो को है बुनना
लेकिन शायद कुछ छूट रहा
बन बादल उड़ने का सपना
जो उड़ता है अपनी लय में
जग को मुस्कान दिलाता है
कुछ छोटी कागज की नावो में
सपनो को सैर कराता है
अंधियारे की रात विकल
सपनो से खेल रहा होगा
मेरा सोया बचपन कही इधर
कृते अंकेश
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