प्रस्ताव
चंचलता है इन आँखों में
कैसे होठो पर ले आऊं
तुम तो इतने नादान नहीं
क्या तुमको भी अब समझाऊं
या शायद है यह कोई
तेरी तरकीब पुरानी सी
नादान बनी तकती मुझको
करती हरकत बेगानी सी
इस छिपी हुई सूरत में अब
खुद को ओझल में कर जाऊं
कुछ और शरारत में डूबू
इन रंगों से मै रंग जाऊं
या ढकी हुई इन तस्वीरों में
अपने रंगों को भर जाऊं
या इन नयनों से जीवन के
सपनो में तुझको रंग जाऊं
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment