सन्देश
जो यदि वो बैठ जाते हाथ पर यु हाथ रख
तो भला कैसे पहुचते चन्द्र पर मनु के यह पग
जीत माना आराध्य है लेकिन असाध्य है नहीं
हार से कर मित्रता
है जीत का भी मार्ग यही
राह यह दुर्गम तो क्या
तूने सरल पथ कब चुना
मुश्किलों से जूझना ही
है तेरी फितरत सदा
फिर भी न हो विश्वास तो
इतिहास को ही देख ले
थे रहे असंभव पथ
लेकिन कदम बढते चले
स्वप्न के उन्माद में
निज को भी त्याग दिया
हर घडी मनुपुत्र ने
एक नया स्वप्न साकार किया
कृते अंकेश
कृते अंकेश
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