तेरी तमन्नाओ में वक़्त ही कहा गुजरा
बस ये झुर्रिया समय का एहसास दिलाती है
खयालो की खलिश तो अभी तक ज़वा है
तू ही है जो कभी नहीं आती है
लगता है अब तो मौसम ने भी ओढ़ी है उदासी
कहा गयी बारिश की बूंदे
खुले आसमान में भी छाया अँधेरा
खो चुकी है इंदु किरणे
चला तेरी यादो का मंथन मैं करने
हलाहल ही शायद मुझे मिल जाये
बनू नील कंठ उन यादो से शायद
मुझे मेरी मंजिल यु ही मिल जाये
कृते अंकेश
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