मेरे झरोखे से समय का पता ही नहीं चलता
फूलो की खुशबू भी नहीं आती
बारिश आकर गुजर भी गयी
मिटटी की खुशबू कहा मिल पाती
अब तो अरसा हो गया
जो भींगा था कभी
क्या बारिश का पानी अभी भी फैला है
या उड़ा ले गयी धूप की तपिश
कौन यहाँ रुका ये जीवन एक मेला है
कितने रंगों को समेटे
यह स्म्रतियो के साये
तू अभी तक पलकों में है
क्या तुझे भी तस्वीर नज़र आये
यु ही गुजर जाएगी
समय की यह सदिया
कभी सम्मुख कभी सपनो में
बस बनती रहेगी यह दुनिया
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