उस बारिश में भीगा था मन
अब तक पलको में पानी है
ख्वाइश तो पंख लगा उड़ने की थी
लगता अब सब नादानी है
रेत में खीचे चित्र यहाँ
पल भर के साथी होते है
लहरो का जो साथ मिला
बन सपनो के वासी होते है
आँसू को दोष भला क्यो दे
उसकी तो फितरत बह जाना
पलको ने सब कुछ देखा था
इनको तो था चुप रह जाना
ख़ामोशी का बस साया है
आहट भी शोर सी लगती है
न कोई आता जाता है
जीवन का यह बेरंग सा पल
बारिश तो आती जाती है
मन क्यो है इतना यह चंचल
उस बारिश में भीगा था यह
अब तक पलको में पानी है
ख्वाइश तो पंख लगा उड़ने की थी
लगता अब सब नादानी है
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