रात भर जला शहर यू अपनी आग में
ढूंढती थी फिर सुबह क्या बचा है राख में
बनकर हवा थी उड़ गयी, रुप, वैभव और छवि
कोयलों के ढेर में आखो की नमी शायद बची
संभोग मे रत अस्थिया, गिद्दो की चौचो की नौकपर
क्षण में बदला हैं शहर, क्षणभंगुरता को छोड़कर
कृते अंकेश
ढूंढती थी फिर सुबह क्या बचा है राख में
बनकर हवा थी उड़ गयी, रुप, वैभव और छवि
कोयलों के ढेर में आखो की नमी शायद बची
संभोग मे रत अस्थिया, गिद्दो की चौचो की नौकपर
क्षण में बदला हैं शहर, क्षणभंगुरता को छोड़कर
कृते अंकेश