एक अधूरी सुबह मिली
कुछ जागी कुछ सोयी रही
आँखों में थी सपने लिए
पलकों को न बन्द किये
उड़ती थी फिर रात उधर
छूटा था जो साथ इधर
एक किरण फिर नयी दिखी
सुबह की तस्वीर छिपी
दिन का फिर आघात हुआ
निद्रा हाय विश्वासघात हुआ
कृते अंकेश
कुछ जागी कुछ सोयी रही
आँखों में थी सपने लिए
पलकों को न बन्द किये
उड़ती थी फिर रात उधर
छूटा था जो साथ इधर
एक किरण फिर नयी दिखी
सुबह की तस्वीर छिपी
दिन का फिर आघात हुआ
निद्रा हाय विश्वासघात हुआ
कृते अंकेश
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