तुम मुझको बताती रही
अपनी बातें
क्यों तुम नाराज़ थी इतना
क्यों नहीं चाहती थी तुम कि लोग उनको छोड़ दे
और कैसे अचानक से हुआ था फिर यह फैसला
और गए थे सर्दियों की उस रात में तुम घूमने
और रही तुम देखती रंग बिरंगी मछलिया
आज भी तुम ढूंढती हो एक किनारा फिर कही
और क्यों नहीं तुमने ख़रीदा हार वो बेशकीमती
तुमने बताना चाहा था मुझको हमेशा कुछ नया
लेकिन मैंने तुमको सिर्फ तुमको
और हमेशा तुमको ही सुना
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment