या तो चलने का मौका दो
या फिर जलने का मौका दो
कब तक होगी यह रात प्रखर
कब तक अश्रु विप्लव यह शहर
कब तक उमडेगा इन्कलाब
कब तक जीवित है शेषनाग
कब तक चमकेंगे तुच्छ स्वर
कब तक खनकेंगे चंद महर
उड़ता जायेगा यह विषाद
कर दो जाकर अब शंखनाद
है प्रहर यही है घडी यही
जो हुआ अभी नहीं तो कभी नहीं
कृते अंकेश
या फिर जलने का मौका दो
कब तक होगी यह रात प्रखर
कब तक अश्रु विप्लव यह शहर
कब तक उमडेगा इन्कलाब
कब तक जीवित है शेषनाग
कब तक चमकेंगे तुच्छ स्वर
कब तक खनकेंगे चंद महर
उड़ता जायेगा यह विषाद
कर दो जाकर अब शंखनाद
है प्रहर यही है घडी यही
जो हुआ अभी नहीं तो कभी नहीं
कृते अंकेश
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