एक आहट साँसों के स्वर से
मिटती गयी तवस्सुर से जुड़ के
बरबस अनायास आ निकली
अंखियो से मणिको की टोली
खेल रहे हम उससे होली
रंग भी अपने रहे निराले
तोड़ तोड़ कर सपने डाले
और जला दी उनकी होली
साँसों ने आवाज़ न खोली
उड़ता धुआ रहा चिल्लाता
कब तक छाएगा सन्नाटा
गयी नहीं पर ख़ामोशी खोली
रहे खेलते बस हम होली
कृते अंकेश