हुई रात मेरे तात भी आते
देखो पंक्षी घर को जाते
छोड़ो हाथ मुझे जाना है
वापिस कल भी तो आना है
अभी कहा है चाँद भी निकला
रवि किरणों का रंग न बदला
क्या है जल्दी कहा है जाना
बना रहे हो व्यर्थ बहाना
देखो रात घनी है घिरती
तुमको सूझ रही बस मस्ती
छाए मेघ है भींग न जाना
ऊपर से है पथ अनजाना
नहीं मिलेगा ऐसा मौका
छलकेगा जल जब अम्बर का
तेरे चेहरे से मोती बनके
उसका मुझको दर्श है पाना
क्या है जल्दी कहा है जाना
बना रहे हो व्यर्थ बहाना ।।
कृते अंकेश
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