यमुना तेरे तट पर लिखी कितनी कहानी है
कितने शहर बसते यहाँ कितनी रुवानी है
आँखों में है रहती चमक सजती जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है
थी कृष्ण की कालिंदी तू थी सूर का बचपन
तेरे ही तट पर थी रुकी मुगलों की हर धड़कन
ग़ालिब ने की थी शायरी तेरे ही सायो में
थी ली भगत ने भी पनाह तेरी ही बाहों में
तेरे किनारों पर लगे कितने यहाँ मेले
तेरे तटों पर न जाने कितने वीर थे खेले
तेरे सहारे ही हुई विकसित यह सभ्यता
हाय मगर क्यों भूली आज यह तेरी महत्ता
संभलो संभालो आज यह अपनी निशानी है
अपनी रगों में दोड़ता इसका ही पानी है
आँखों में है रहती चमक सजती जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है
अंकेश
कितने शहर बसते यहाँ कितनी रुवानी है
आँखों में है रहती चमक सजती जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है
थी कृष्ण की कालिंदी तू थी सूर का बचपन
तेरे ही तट पर थी रुकी मुगलों की हर धड़कन
ग़ालिब ने की थी शायरी तेरे ही सायो में
थी ली भगत ने भी पनाह तेरी ही बाहों में
तेरे किनारों पर लगे कितने यहाँ मेले
तेरे तटों पर न जाने कितने वीर थे खेले
तेरे सहारे ही हुई विकसित यह सभ्यता
हाय मगर क्यों भूली आज यह तेरी महत्ता
संभलो संभालो आज यह अपनी निशानी है
अपनी रगों में दोड़ता इसका ही पानी है
आँखों में है रहती चमक सजती जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है
अंकेश