ढूंढ रहा अपनी परछाई
खुद से भी अनजान हुआ
बीत गए सुख दुःख के साए
गम भी अब वीरान हुआ
भटक रहा हूँ अंधियारे में
आशाएं भी लुप्त हुई
जीवन की यह शेष स्वांस भी
अंतपूर्व ही मुक्त हुई
योग वियोग सीमाएं छूटी
काल विकाल रची वसी
शून्य सरोवर में बहती यह
काया ही अब शेष बचीकिसी रोज़ और किसी मोड़ पर
जो पैगाम मिले कोई
कह देना यह रात गयी
लाने एक प्यारी सुबह नयी..........
कृते अंकेश
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