सत्य
कुछ बदला सा पाया है
धुंधलापन गायब है
हर दृश्य उभर कर आया है
झूम रहे तरुपत्र सामने
पक्षी सुर में गाते है
सावन बीत गया है फिर भी
बादल गीत सुनाते है
बहती मादक पवन सयानी
शीतलता को चूम रही
फुटपाथो पर बिखरी छाया
आज खुशी से कूद रही
रहने दो बस यही छवि
क्या परिवर्तन स्थायी है
छाया धुंधलापन आँख खुली
यह सपना भी अस्थायी है
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