शब्दो को ताली मिलती है
पर जैबे खाली मिलती है
Wednesday, September 29, 2010
Tuesday, September 28, 2010
Tuesday, September 21, 2010
जब चिड़िया चुग गयी खेत
.बारिश होते होते काफी देर हो चुकी थी .....कहने को तो शाम के सात ही बजे थे, लेकिन लग रहा था मानो रात की बेला भी ढलने को आ गयी हो . पापा भी कितनी बार बोले थे बेटा कल चले जाना ..... आज मौसम कुछ ठीक नहीं है. पर जवान जोश के आगे उम्र का रौब कहा टिकता है. हम भी डट कर बोले, कोई लड़की थोड़े ही है, जो कोई उठा कर ले जायेगा ....... अब भुगतो, उठाने का तो पता नहीं, लेकिन अगर बारिश न रुकी तो यह पानी तो पक्का हमें बहा कर ही छोड़ेगा. यहाँ आस पास कोई घर या ठोर ठिकाना भी तो नज़र नहीं आ रहा है . हे इन्द्र देवता कुछ तो रहम करो, में सारे जीवन आपके उपकारो को नहीं भूलूंगा , अरे यहाँ तक की इतनी गारंटी भी देने को तैयार हू कि मेरी बस्ती में किसी को आपकी गद्दी की और आँख तक उठाने नहीं दूंगा, भगवन बस यह बारिश रोक लो. यह क्या, प्रार्थना का असर तो कुछ उल्टा ही मालूम होता है ...... बारिश की तीव्रता समय के साथ बढती ही जा रही है . छोटे छोटे गड्डे भी सागर को पछाड़ने के लिए जोर शोर से लगे हुए है, नालियो की सीमा विजयी दल की भाति परिवर्तित होती जा रही है. यहाँ तक की कुछ नालिया तो नयी नवेली दुल्हन की तरह इठलाती हुई चलने लगी है . कचरे की भी आज उड़ कर लगी है , मुफ्त में नदी की सैर जो कर रहा है. अब तक सुरक्षित बची मेरी सैन्य चौकी भी अब बारिश के बहाव का शिकार होने के कगार पर आ गयी. कहा जाता है दुश्मन को अगर तोडना है तो सबसे पहले उसकी जड़ो को तलाशो. एक बार अगर जड़ हाथ में आ गयी, फ़तेह तो खुद बखुद हो जाएगी . काल देवता भी आज समूल विनाश के इरादे से ही आये है. पानी के जोर से मेरे आस पास की मिट्टी भी तेरती हुई सागर से मिलने निकल पड़ी. अब तो अतीत के चित्र आँखो के सामने से गुजरने लगे. जब में छटवे दर्जे में था, मुझे तैराकी सीखने की बड़ी इच्छा होती थी. लेकिन मन की इच्छाओ को प्रधानता मिलती ही कहा है , कभी साल दो साल में अगर कही जिक्र छिड गया तो याद आ उठता था, वर्ना फिर से यह आशा मन के किसी कौने में दब कर बैठ जाती थी. लेकिन आज वाकई खुद पर अफ़सोस हो रहा है, अगर कभी अपनी इच्छाओ को जरा भी प्रधानता दी होती तो आज जान पर बन आने की नौबत तो नहीं आती. लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत.
.बारिश होते होते काफी देर हो चुकी थी .....कहने को तो शाम के सात ही बजे थे, लेकिन लग रहा था मानो रात की बेला भी ढलने को आ गयी हो . पापा भी कितनी बार बोले थे बेटा कल चले जाना ..... आज मौसम कुछ ठीक नहीं है. पर जवान जोश के आगे उम्र का रौब कहा टिकता है. हम भी डट कर बोले, कोई लड़की थोड़े ही है, जो कोई उठा कर ले जायेगा ....... अब भुगतो, उठाने का तो पता नहीं, लेकिन अगर बारिश न रुकी तो यह पानी तो पक्का हमें बहा कर ही छोड़ेगा. यहाँ आस पास कोई घर या ठोर ठिकाना भी तो नज़र नहीं आ रहा है . हे इन्द्र देवता कुछ तो रहम करो, में सारे जीवन आपके उपकारो को नहीं भूलूंगा , अरे यहाँ तक की इतनी गारंटी भी देने को तैयार हू कि मेरी बस्ती में किसी को आपकी गद्दी की और आँख तक उठाने नहीं दूंगा, भगवन बस यह बारिश रोक लो. यह क्या, प्रार्थना का असर तो कुछ उल्टा ही मालूम होता है ...... बारिश की तीव्रता समय के साथ बढती ही जा रही है . छोटे छोटे गड्डे भी सागर को पछाड़ने के लिए जोर शोर से लगे हुए है, नालियो की सीमा विजयी दल की भाति परिवर्तित होती जा रही है. यहाँ तक की कुछ नालिया तो नयी नवेली दुल्हन की तरह इठलाती हुई चलने लगी है . कचरे की भी आज उड़ कर लगी है , मुफ्त में नदी की सैर जो कर रहा है. अब तक सुरक्षित बची मेरी सैन्य चौकी भी अब बारिश के बहाव का शिकार होने के कगार पर आ गयी. कहा जाता है दुश्मन को अगर तोडना है तो सबसे पहले उसकी जड़ो को तलाशो. एक बार अगर जड़ हाथ में आ गयी, फ़तेह तो खुद बखुद हो जाएगी . काल देवता भी आज समूल विनाश के इरादे से ही आये है. पानी के जोर से मेरे आस पास की मिट्टी भी तेरती हुई सागर से मिलने निकल पड़ी. अब तो अतीत के चित्र आँखो के सामने से गुजरने लगे. जब में छटवे दर्जे में था, मुझे तैराकी सीखने की बड़ी इच्छा होती थी. लेकिन मन की इच्छाओ को प्रधानता मिलती ही कहा है , कभी साल दो साल में अगर कही जिक्र छिड गया तो याद आ उठता था, वर्ना फिर से यह आशा मन के किसी कौने में दब कर बैठ जाती थी. लेकिन आज वाकई खुद पर अफ़सोस हो रहा है, अगर कभी अपनी इच्छाओ को जरा भी प्रधानता दी होती तो आज जान पर बन आने की नौबत तो नहीं आती. लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत.
Thursday, September 16, 2010
Saturday, September 11, 2010
अंत
ढूंढ रहा अपनी परछाई
खुद से भी अनजान हुआ
बीत गए सुख दुःख के साए
गम भी अब वीरान हुआ
भटक रहा हूँ अंधियारे में
आशाएं भी लुप्त हुई
जीवन की यह शेष स्वांस भी
अंतपूर्व ही मुक्त हुई
किसी रोज़ और किसी मोड़ पर
जो पैगाम मिले कोई
कह देना यह रात गयी
लाने एक प्यारी सुबह नयी..........
कृते अंकेश
ढूंढ रहा अपनी परछाई
खुद से भी अनजान हुआ
बीत गए सुख दुःख के साए
गम भी अब वीरान हुआ
भटक रहा हूँ अंधियारे में
आशाएं भी लुप्त हुई
जीवन की यह शेष स्वांस भी
अंतपूर्व ही मुक्त हुई
योग वियोग सीमाएं छूटी
काल विकाल रची वसी
शून्य सरोवर में बहती यह
काया ही अब शेष बचीकिसी रोज़ और किसी मोड़ पर
जो पैगाम मिले कोई
कह देना यह रात गयी
लाने एक प्यारी सुबह नयी..........
कृते अंकेश
Sunday, September 05, 2010
सत्य
कुछ बदला सा पाया है
धुंधलापन गायब है
हर दृश्य उभर कर आया है
झूम रहे तरुपत्र सामने
पक्षी सुर में गाते है
सावन बीत गया है फिर भी
बादल गीत सुनाते है
बहती मादक पवन सयानी
शीतलता को चूम रही
फुटपाथो पर बिखरी छाया
आज खुशी से कूद रही
रहने दो बस यही छवि
क्या परिवर्तन स्थायी है
छाया धुंधलापन आँख खुली
यह सपना भी अस्थायी है
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