मेरे कुछ ख़ास साथियो को समर्पित
रात गुजर सी चली गयी
आने वाले कल की यादे
फिर माथें में उभर रही
स्वप्निल स्वरित स्वयंभू काया
स्वप्नों की यह चंचल छाया
स्वप्न सरोवर सुधा प्रवाहित
आज सृजन को उभर रही
छोड़ चला मैं आज स्वयं को
स्वप्न नया एक पाने को
कदम उठाये आज है मैंने
दुर्गम पथ अपनाने को
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