जब बारिश की बूंदो ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
खेतो की हरियाली ने भी गाँव का दामन छोड़ दिया
सुनकर आया तेरे दर पर खुशियो की बारिश होती है
नहीं पता था आंसू बहते और नुमाइश होती है
आज तुम्हारे शहर मैं आकर मैं खुदको ही भूल गया
नहीं पता किस राह चला था और किधर मैं निकल गया
अपनी मिट्टी पर जब हम अनजाने चेहरे पाते थे
उन चेहरों मैं भी जाने कैसे अपनापन खोज ही लाते थे
आज सेकड़ो चेहरो में , मैं खुद को खोया सा पाता हूँ
बस फुटपाथो पर बिखरी भूखी लाशे गिनता जाता हूँ
नही जानता क्यो फिर भी वो गीत खुशी के गाते हैं
क्या वो इतने सीमित है या हम सीमा से बाहर आ जाते हैं
क्या वो इतने सीमित है या हम सीमा से बाहर आ जाते हैं
No comments:
Post a Comment