समर्पण
उस क्षण मुझको विश्राम कहा
आनंद भी हैं अविराम नहीं
सीमा अब तक अपरिभाषित सी
बिखरी आशा अनजान यही
मुझको उत्तर की चाह नहीं
मेरे प्रश्नों का मोल यही
जीवन मेरा संग्राम सा हैं
पाने की इसमें आस दबी
कुछ पल गुमसुम ही रहने दो
ख़ामोशी तोड़ी जाएगी
बरसो से ख्वाब सजाया है
तस्वीर भी मोड़ी जाएँगी
अश्रु भी अवसान नहीं
जीवन भी अंत नहीं होगा
यह क्रम सदा चलता आया
मुझसे विचलित न कल होगा
यही समर्पण पाया था
मैं यही समर्पण दे जाऊँगा
मैं आज समर्पित होता हूँ
कल यही समर्पण चाहूँगा
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