लोग भूल जाते है
रिश्तो के धागो की उलझन खुल ही जाती है
घनघोर घटा हो काली सुबह फिर भी आती है
पल के आवेशो में अखिया व्यर्थ भिंगाते है
लोग भूल जाते है
कृते अंकेश
रिश्तो के धागो की उलझन खुल ही जाती है
घनघोर घटा हो काली सुबह फिर भी आती है
पल के आवेशो में अखिया व्यर्थ भिंगाते है
लोग भूल जाते है
कृते अंकेश
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