शब्द बिखरते रहे
गिरते रहे जमीन पर
बेसुध, बेहोश
भीड़ से भरे भवन में कवि के निशान मिटते गए
दूर वीराने में
कोई लिखता है
शब्दो को चुन कर
पिरोता है अक्षर से मोती छंदो में बुनकर
सजती है कविता उन पन्नो पर
कृते अंकेश
गिरते रहे जमीन पर
बेसुध, बेहोश
भीड़ से भरे भवन में कवि के निशान मिटते गए
दूर वीराने में
कोई लिखता है
शब्दो को चुन कर
पिरोता है अक्षर से मोती छंदो में बुनकर
सजती है कविता उन पन्नो पर
कृते अंकेश
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