सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
अभी तो गिरा था लहू
जमीन से उसका निशान भी नहीं मिटा
क्या इन घाटियो में फूल फिर से खिल पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
वो डाल रहे है परदे आखो पर अनगिनत
पर क्या इस मन को भी कोई ढक पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
मुझे नहीं पसंद है उदासी और रक्तरंजित तस्वीरें
पर क्या जेहन में जो बसा जो जा पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment