इन कंक्रीट के जंगलो में
आदमी ही आदमी का शिकार करता है
गगनचुम्बी इन इमारतो के अंदर
एक गहरी खाई है
जिसमे सपनो का प्रतिबिम्ब दिखता है
जैसे जैसे आप ऊचाइयो को पाते है
वह प्रतिबिम्ब आपसे उतना ही दूर होता जाता है
हवा, रौशनी , हॅसी , मुस्कराहट सब अपनी है इस जंगल की
उतनी ही कृत्रिम जितनी की यह इमारत
कृते अंकेश
आदमी ही आदमी का शिकार करता है
गगनचुम्बी इन इमारतो के अंदर
एक गहरी खाई है
जिसमे सपनो का प्रतिबिम्ब दिखता है
जैसे जैसे आप ऊचाइयो को पाते है
वह प्रतिबिम्ब आपसे उतना ही दूर होता जाता है
हवा, रौशनी , हॅसी , मुस्कराहट सब अपनी है इस जंगल की
उतनी ही कृत्रिम जितनी की यह इमारत
कृते अंकेश
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