एक ठहरन ही तो है जो मुझको तुमसे दूर लिए जाती
वरना कितने अवसादो के बाद कहा रूक पाया में
मन के पंख उड़ा लेते थे कब के पास तुम्हारे फिर
ख़ामोशी, इनकारो से भी, कब कब था रुक पाया में
कृते अंकेश
वरना कितने अवसादो के बाद कहा रूक पाया में
मन के पंख उड़ा लेते थे कब के पास तुम्हारे फिर
ख़ामोशी, इनकारो से भी, कब कब था रुक पाया में
कृते अंकेश
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