दिन भर थक हार के बैठी
राह जोतती जाने किसकी
सांझ भी लो न लायी संदेसा
छाया रहा अँधेरा कैसा
उड़ते रहे पतंगे फेरे
पक्षी बापिस घर के डेरे
जग अपनी रातो को सजाता
उसके पथ कोई न आता
सोचे नयन पलक को डारे
उसकी छवि को पास बुला ले
लेकिन पलके खोल ज्यो आती
छाया घना अँधेरा पाती
कृते अंकेश
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