आकांक्षा
जा पंथी अब छोड़ मुझे
जा पंथी अब छोड़ मुझे
मैं बीते कल की दासी हूँ
एक पहेली अनसुलझी सी
कोई ग़ज़ल पुरानी हूँ
पैमानो के जोर में अटकी
आज भी तोली जाती हूँ
एक अधूरी मृग आकांक्षा
नयनो के गोते खाती हूँ
जा सपनो के रंगो में उड़कर
तू अपनी मुस्कान सजा ले
गम की छाया छोड़ यहाँ पर
कोई ग़ज़ल पुरानी हूँ
पैमानो के जोर में अटकी
आज भी तोली जाती हूँ
एक अधूरी मृग आकांक्षा
नयनो के गोते खाती हूँ
जा सपनो के रंगो में उड़कर
तू अपनी मुस्कान सजा ले
गम की छाया छोड़ यहाँ पर
खुशियो के तू रंग बहा दे
देख वाबरी अंधियारी रातें
में अपनी सेज सजा ही लूंगी
कदमो के जाने की आहट से
अपना रंग मिटा ही दूँगी
सूरज की किरणे फिर से जब
तेरे मस्तक से टकराएंगी
सारे रंग भूल श्वेत सी
स्मृति उभर कर आएगी
मेरे रंगो का वह धागा
हो सके अगर तो लौटा देना
जीवन की शैय्या पर बिखरे
स्वप्नो को मिटा देना
कृते अंकेश
देख वाबरी अंधियारी रातें
में अपनी सेज सजा ही लूंगी
कदमो के जाने की आहट से
अपना रंग मिटा ही दूँगी
सूरज की किरणे फिर से जब
तेरे मस्तक से टकराएंगी
सारे रंग भूल श्वेत सी
स्मृति उभर कर आएगी
मेरे रंगो का वह धागा
हो सके अगर तो लौटा देना
जीवन की शैय्या पर बिखरे
स्वप्नो को मिटा देना
कृते अंकेश
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