क्षण भर के कम्पन ने फिर से
एक नयी त्रासदी ढा दी
कितनी सूक्ष्म असहाय जिन्दगी
जल तरंग ने पल में बहा दी
असंभव घटनाओ कायह कैसा क्रम है छाया
नाभिकीय विस्फोटो से
विकिरण निकल बाहर है आया
ढूढ़ रहे है दूर दूर से
आये नयन मनुज के तन को
अपने स्वप्नो के मलवे में
छिपे हुए मानव के मन को
स्वयं झूझती सीमाओ से
आज अर्ध्सुप्त सी काया
सकल विश्व हुआ एक हैयह संकट मानव पर आया
No comments:
Post a Comment