प्रकृति के पुत्र
मनुवंशज मानव सुपुत्र
व्याकुल है किसी बड़े शहर मैं
चिंतित हैं परिवर्तित पर्यावरण मैं
उद्देश्य अभी भी स्वार्थ ही है
अपना अस्तित्व बचाने का
बिगड़े मौसम को मनाने का
झगडे होते
किसका दायित्व
किसका अपराध बड़ा मुझसे
वह खेला था, पहले मुझसे
चिंता है अपने जीवन की
नहीं सोच है संतुलन की
फिर से कागज भर जायेंगे
जंगल कटते जायेंगे
हम विकसित होते जायेंगे
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