समर
यह समर मिलन है सीमा का
हर घाव यहाँ धुलते हैं
जब रक्त यहाँ बहता हैं
माटी से रिसता हैं
जाता हैं उस पार वहा
जहा एक वीर है और ढहा
माटी करवाती आलिंगन
चूमा करती हर कण से कण
यह रक्त नहीं आंसू है
जो धरती आज है रोती
खोये है दो वीर पुत्र
कैसे खुश हो सकती
फिर जस्न मना यह कैसा
यह कौन बजाये तुरही
यह किसने खीची सीमा
यह किसकी संसोधित संधि
Saturday, June 26, 2010
बेवफा
शायर क्या है वफ़ा
यह मौत सिखा जाती है
दो कदम बहुत ज्यादा है
पल भर में ले जाती है
वो तो हँसते थे चलते थे
यह चुपके से आती है
वो जाने पहचाने थे
यह अनजानी ले जाती है
हम सफ़र कहो या दीवाना
यह वफ़ा निभाती है
आती है ले जाती है
मझधार में न तड़पाती है
है इश्क मुझे हर पल से
दिल तक जब रहता है
सोचा जो इसने पल भर
मतलबी बना कहता है
हम बड़े हैं शायर कलम हमारी
वो बेवफा नारी
जो थी जानी पहचानी
और यह मौत मिली अनजानी
Wednesday, June 23, 2010
Saturday, June 19, 2010
समर्पण
उस क्षण मुझको विश्राम कहा
आनंद भी हैं अविराम नहीं
सीमा अब तक अपरिभाषित सी
बिखरी आशा अनजान यही
मुझको उत्तर की चाह नहीं
मेरे प्रश्नों का मोल यही
जीवन मेरा संग्राम सा हैं
पाने की इसमें आस दबी
कुछ पल गुमसुम ही रहने दो
ख़ामोशी तोड़ी जाएगी
बरसो से ख्वाब सजाया है
तस्वीर भी मोड़ी जाएँगी
अश्रु भी अवसान नहीं
जीवन भी अंत नहीं होगा
यह क्रम सदा चलता आया
मुझसे विचलित न कल होगा
यही समर्पण पाया था
मैं यही समर्पण दे जाऊँगा
मैं आज समर्पित होता हूँ
कल यही समर्पण चाहूँगा
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