प्रवाह
सेकड़ो घर ले समेटे काल बन संकट है छाया
आंसूओ की क्या कमी थी
जल का यह सागर बहाया
या सचमुच मनुष्य ने प्रकृति को इतना रुलाया
तीव्र विस्तार से जल की धारा जो चली
लग रहा मानो भोगोलिक सीमाएं सारी घुल चली
एक है दुनिया हमारी
अस्तित्व अपना एक है
आओ मिटाये दूरिया यह मनुष्य अभी शेष है